उनको अपने नाक पर ऊँगली रखके सोचने की आदत थी. जैसे औरों को
अपने माथे पर रख के सोचने की होती है. असल में उनकी नाक इतनी बड़ी थी कि शायद पहली
बार माथे कि तरफ ऊँगली ले जाते वक़्त बीच में barrier बन के नाक आ गयी होगी और बाद
में ये आदत बन गयी. इतनी भयानक आदत थी कि अगर हाथ busy हो तो छोटुआ को बाकायदा
बोला जाता था कि उनकी नाक पर ऊँगली रखे ताकि वो सोच सकें.
अब झुन्नू भैया ज्यादा bright से शख्स थे नहीं. ज़ाहिर सी
बात है कि जो कोई अपनी नाक से सोचता हो उससे क्या ही उम्मीद लगायी जा सकती है? एक
बार झुन्नू भैय्या खाने बैठे राजमा-चावल तो राजमा में कोई taste ही नहीं लगा
उन्हें. बिलकुल फीका. फिर क्या था? छोटुआ पर बरस पड़े, “तुमको का लगता है? एक तुम
ही हमारा जासूसी कर सकता है? हम भी मम्मी को खबर कर सकते हैं कि तुम कोई काम ढंग
से नहीं करता है. फिर जाना तुम वापस भितरामपुर.”
“का हो गया? काहे कौवा बने हुए हैं?”
“ई कोई राजमा बनाया था तुम? न नमक न मसाला. खाना बनाना याद
भी है?”
“हम कब राजमा बनाये? का खा लिए आप? हमको तो पता ही नहीं है.
अरे वो जो हम फूलने के लिए पानी में डाले थे, कहीं वो तो नहीं खा गए न?”
Silence. Awkward Silence. साला Awkward का बाप Silence.
अब जो झुन्नूपुराण बांचने बैठेंगे तो सुबह से रात और फिर
सुबह हो जाएगी. सो थोडा थोडा बताय रहे हैं.
ऐसा हुआ एक
बार कि वो 12वीं के board के mock टेस्ट में chemistry में fail हो गए. तो उनको ये
निर्देश मिले कि अपने पिताजी की मैडमजी के सामने परेड करवाई जाए. अब कम नंबर लाने
का उनका अनुभव तो पुराना था पर अपने पिताजी के सामने उनके कभी कम नंबर नहीं आये.
कुछ ऐसी बातें होती थी उनकी रिजल्ट निकलने के बाद.
“पप्पाजी
रिजल्ट आ गया.”
“कैसे नंबर
आये?”
“अच्छे ही
आये हैं.” [ सिर्फ ठीक बोलने से न तो काम चलता था और शक पैदा होने की भी गुंजाईश
रहती थी.]
“पर कितने
अच्छे आये हैं?”
“ जी 57% आये
हैं.” (ये सच्चाई थी. पर ख़ुशी और दुःख के एक delicate से बैलेंस को बना कर ये
बोलना होता था जिससे लगे कि ये कम नंबर भी अच्छे ही हैं.)
“पर बेटा, ये
तो कम हैं. फर्स्ट डिभीज़न भी नहीं हैं.” ( जैसे पंजाबियों को बटर चिकन से,
मद्रासियों को The Hindu newspaper से मोहब्बत होती है, वैसे ही बिहार में माँ-बाप
को फर्स्ट डिभीज़न से लगाव होता है).
“अच्छे हैं
पप्पाजी. हमारी क्लास में बस 3 लोगों के इससे ज्यादा आये हैं.” (ये trick use करके
अपने पिताजी को चूतिया बनाने की कोशिश करने वाले शायद वो दुनिया के 15478921वें
शख्श थे.)
“ऐसे कैसे
बेवक़ूफ़ पढ़ते हैं तुम्हारी क्लास में. बेकारे तुमको दिल्ली भेजे.”
“अरे ऐसा
नहीं है पप्पाजी. वो हमारी मैडम सब हैं न वो कम ही नंबर देते हैं. ऊ का बोलते हैं
कि ज्यादा नंबर दे दिए तो बच्चा लोग ऊ का कहते हैं कंप्लेंट हो जायेगा और पढाई
नहीं करेगा.”
उनके पिताजी
इसके बाद ज्यादा कुछ नहीं कहते थे. शायद कई बार जनसे ज्यादा प्यार किया जाता है
उनके द्वारा बेवक़ूफ़ बनाये जाने की आदत हो जाती है. बस इसी mutual understanding पर
दोनों की बातें ख़त्म हो जाती थी.
पर अब जो
fail हो गए थे और निर्देश सख्त थे तो झुन्नू जी को ये समझ नहीं आ रहा था कि
पप्पाजी को कैसे समझाएं कि रातों-रात उनका ये सचिन तेंदुलकर शिव सुन्दर दास कैसे
बन गया. तो काफी पशोपेश में थे.
“अरे झुन्नू
भैया, कहते हैं कि मजबूरी में तो गधे को भी बाप बनाना पड़ता है. कसम से हम fail हुए
होते तो आपको ही बाप बना कर ले जाते. पर अब आप तो ये भी नहीं कर सकते न.”
नाक पर ऊँगली
रखने के बाद भी उनकी समझ में घंटा कुछ नहीं आया. अच्छा ही था एक तरीके से ये भी.
तभी हमारे दिमाग में कुछ चमका.
“झुन्नू
भैया. गधा छोड़िये. गधे से अच्छी acting तो आपका छोटुआ कर लेगा. थोडा बड़ा तो लगता
ही है आपसे. का कहते हैं, बताइए.”
“नहीं मानेगा
न. और मैडमजी को पता लग गया तो बम्बू कर देंगी.”
“और जो आपके
पप्पा को पता चल गया की आप chemistry में चारों खाने चित्त हो गए हैं तो बम्बू
छोड़िये, टेंट नहीं खड़ा कर देंगे वो? तो सोच
लीजिये कि टेंट चाहिए या बम्बू?”
इस argument
पर वो फिर से चारों खाने चित्त हो गए.
छोटुआ को
मनाना कोई बड़ी बात नहीं थी. अगर जो ये नाटक चल जाता तो उसके हाथ में ज़िन्दगी भर के
लिए झुन्नू भैया को blackmail करने का ज़बरदस्त हथियार आ जाता. और जो कहीं नहीं
चलता तो कुछ पैसे और “included perks” की guarantee उसे दे दी गयी थी. ये असल में
झुन्नू भैय्या ने नहीं दी थी. हमलोगों ने दी थी. कोई तमाशा बनने को तैयार हो जाए
तो कई बार डमरू बजाने की ज़रुरत नहीं होती भीड़ इकठ्ठा करने के लिए.
छोटुआ को सब
कुछ सिखा दिया था उन्होंने. कहने का मतलब बस ये था कि उसको बता दिया था कि उसे बस चुप
रहना है. बाकी झुन्नू भैय्या को भरोसा था कि वो संभाल लेंगे. उनका भरोसा देख कर
समझ में आता था कि मायावती और राम विलास पासवान जैसे लोग कैसे प्रधानमंत्री बनने
के सपने देखने लगते हैं.
D-Day के दिन
छोटुआ को लेकर झुन्नू भैय्या स्कूल पहुंचे. सीधे शब्दों में कहें तो उनकी फटी पड़ी
थी. आखिर बम्बू/टेंट के लिए जगह भी बनानी थी. खैर मैडम जी अच्छे मूड में लग रही
थी. वैसे भी PTM के दिन सारे teacher अच्छे मूड में ही होते हैं. मानों कोई मोबाइल
पर shooting गेम खेल रहे हों और अचानक से बोनस लेवल आ जाये और भड़भड़ा कर 50-60
टारगेट्स एक साथ आ जायें तो मन कैसे गदगद हो जाता है. PTM में टीचरों को ऐसे ही
लगता होगा. “ये बच्चा कहीं छूट ना जाए”.
झुन्नू भैया
का भी नंबर आया. उनको देखते ही मैडम जी चिहुंक कर बोलीं, “क्यूँ बे झुन्नुलाल.
बाबूजी को बुलाने बोले थे न आपको. ये भैयाजी को पकड़ कर क्यूँ ले आये हो? और भाई भी
बड़ा है कि छोटा?”
“मैडमजी, ये
भैया नहीं हैं. हमारे पप्पाजी हैं. बस दिखते नहीं हैं.”
वैसे तो
छोटुआ को सख्त दिशानिर्देश दिए गए थी कि वो अपना मुंह न खोले पर जो कहीं दुनिया
महज़ हिदायतों पर चलती तो फिर कुछ भी नया कभी कहाँ होना था?
तो वो कूद
पड़ा.
“अरे
श्रीमतीजी हम इसके बाप ही हैं. वो क्या है कि हमारा बाल विवाह हो गया था. तो जब हम
बच्चे थे तभी हमारे बच्चे हो गए थे. और फिर थोड़े खाते पीते घर के हैं इसलिए, नज़र न
लगे पर ज्यादा अधेड़ दिखते नहीं हैं.”
ये बकैती
छोटुआ की masterstroke निकली. मैडमजी को जो छोटुआ के झुन्नू भैय्या के पिताजी होने
पर संदेह था, उस शक पर अब शक के काले बादल घुमड़ने लगे थे. पर झुन्नू भैया के दिमाग
में झुनझुना बजने लगा था. पूरी script रट्टा लगा के आये थे वो. यहाँ ससुरी पहला
सवाल ही out of syllabus जा रहा था.
पर
मैडमजी भी इतनी जल्दी कहाँ हार मानने वाली थी. बड़े ही casual से अंदाज़ में पुछा, “तो
जी नाम क्या बताया आपने?”
छोटुआ के
मुंह से तपाक से निकला, “जी बुच्चन भैया बुलाते हैं हमको”.
मैडमजी की
त्योरियां चढ़ने से पहले ही झुन्नू भैय्या के एंटीने खड़े हो गए थे, नथुने फड़कने लगे
थे और मुंह से झाग निकलने ही वाला था कि वो किसी तरह बोले, “वो इनका नाम तो
गंगाश्रय झा है. गाँव में बुच्चन भैया बुलाते हैं. वो हमारे पप्पाजी गाँव से बाहर
निकले नहीं काफी समय से तो कई बार अपना असली नाम ही भूल जाते हैं.”
कुछ हुआ कि
मैडमजी मान गयीं. पता नहीं क्या.
“तो गंगाधर
जी, आप दवाई कि दूकान करते हैं न? मुझे पता चला कहीं से. तो कहीं से कुछ दवाई दारू
कीजिये अपने लाडले के लिए नहीं तो इनको पास करने के लिए बस दुआ का सहारा रह
जायेगा.”
ये कह के
ठहाका लगा कर हंसी. फिर बोलीं, “आप केमिस्ट और आपका बेटा केमिस्ट्री में fail.
हाहाहा.”
सच बताएं तो
जितनी rehersal उन्होंने इस joke और हंसी दोनों की कर रखी थी उसके मद्देनजर उनका
परफॉरमेंस काफी कमज़ोर था. खैर.
पर ये बात
छोटुआ के बारे में नहीं कही जा सकती. वो पूरा character में घुस चुका था. उसके बाद
जो हुआ उसका अंदेशा झुन्नू भैय्या ने अपने सपने में तो क्या अपने सपने के
inception में भी नहीं हुआ होगा. ये इधर झुन्नू भैया का कान था और ये इधर छोटुआ का
हाथ था. “ई का कह रहे हैं मैडमजी? हम तुमको भेजे यहाँ विद्यार्थी बनने के लिए और
तुम तो विद्या की ही अर्थी उठा रहे हो बेटा. अभी तुम्हारे दादाजी को पता चलेगा तो
वो तो सदमे से ही मर जायेंगे.”
ज़ाहिर सी बात
थी, सिनेमा देख देख कर उसने acting करना सीखा था. सो कतई निरूपा राय बन बैठा था.
ये दीगर बात थी कि निरूपा राय के बेटे आमतौर पर college में first आया करते थे.
छोटुआ तो दो
चार झापड़ भी लगाने वाला था पर मैडमजी को अभी कुछ और parents से भी जूझना था. तो
थोडा प्यार से बोलीं, “कोई नहीं गंगाराय
जी. अगले mock टेस्ट में झुन्नूलाल पास हो जायेंगे. ऐसे भी पहला mock टेस्ट हम
जल्दी ले लेते हैं तो बच्चों के पास कई दफा टाइम नहीं होता ज्यादा. तो अब आप जाइये.”
तो ऐसे “बाप
बनाओ operation” में विजयी होकर दोनों ने जैसे ही पीछे मुड़कर चलना शुरू किया था कि
पीछे से मैडम जी ने आवाज़ लगायी, “गंगाराम जी, ये हमारी spondylitis का दर्द बढ़ता
ही जा रहा है. कोई अच्छा pain-killer बताइए न जिसके sideffects न हों.”
“मैडमजी, हम
दवाई की दूकान चलाते भर हैं बस. वैसे तो कुछ लोग देश भी चलाते हैं. है कि नहीं ? जी अब जाते हैं हम.”
मैडमजी ने
हंस कर सर हिला दिया सहमति में. पर जैसे ही दोनों बाहर निकलने वाले थे कि पीछे से
आवाज़ आई, “झुन्नुलाल यहाँ आओ थोडा. और अकेले ही आना.”
पास पहुँचने पर मैडम जी ने कहा, “देखिये अगर आप अगले mock
टेस्ट में fail हो जाते हैं तो हम आपको boards में तो नहीं ही बैठने देंगे और साथ
ही आपके पिताजी को फ़ोन भी कर देंगे. असली वाले पिताजी को. समझ गए न. अब जाइये.”
P.S:- झुन्नू भैया
mock में तो पास हो गए पर board में fail हो गए. आजकल पिताजी को रिटायर करवा के
दवाई की दूकान खुद चलाते हैं. और बस ये है कि उनके कैशिएर कि तनख्वाह हमारे take
home से थोड़ी सी ज्यादा है.