भागती सी ज़िन्दगी,
मानों दिल में कोई चोर बैठा हो।
पैसे का , Traffic का, Boss का, ज़िन्दगी का बुखार
मानों बन्दर बनकर पीछे पड़ा हो।
सात समुन्दर पार बैठे किसी ने
गोया रास्ते में चवन्नियां बिखेर रखी हो।
ज्यादा survive कर गए तो
चवन्नियां अठन्नियां और अठन्नियां रुपये बनते जाते हैं।
और हम छुट्टे छूटने का गम और छुट्टे ही कमाने की ख़ुशी मनाते जाते हैं।
आधी नज़र से ये भी दिखता है
कुछ लोग अंगडी लगाने को तैयार बैठे हैं।
तो कहीं कोई उस कोने में जल भुना बैठा होता है।
आधी नज़र ही खुल पाती है
बाकी तो सिक्कों की सीध तलाशती रहती हैं।
और जैसे जैसे ऊपर जाते हैं,
सिक्कों का मकान बनता है,
चीज़ें और बेचैन होने लगती हैं।
पता भी नहीं चलता कि कब रफ़्तार दूनी हो गयी है।
पर वो बन्दर फिर भी पीछे लगा रहता है
फिसलने की ताक में
जलने की ताक में
गिरने की ताक में
और अंत में जीतता वो ही है।
पता नहीं ज़िन्दगी खेल रहे हैं या Temple Run.
No comments:
Post a Comment