Saturday, November 30, 2013

Swarocean- Kolnkini Radha

This folk song titled Kolonkini Radha (Sullied Radha) is from Bhawiayamusical form popular in Northern Bangladesh. The version presented here is sung by Abhijeet ‘Pota’ Burman. There are many other versions which can be found on YouTube but this is the one I like best.


I have always pictured this song as the perfect musical rendition of latter life of Radha. We have always had some beautiful songs about Radha during her times with Krishna like Radha Kaise Na Jale et al. But despite what the words might suggest, to me this song is about her life beyond that. I suppose it is to do with the noteworthy thehrav I find in the song which is my favorite element of it. The thehrav which I find synonymous with the vacuum Radha would have found in her life after Krishna left. Who knows, if around she might have sung this version during one of her schizophrenic delusions featuring Krishna. 

Maybe I am over-analyzing here, but of what use is a great song if it arouses no partisan feelings. 


(Recently I have put some posts on Quora blog Swarocean  which I am going to henceforth cross-post here. The blog is about songs which are not very well known but are rare accomplishments in their own rights. Unheard tunes, in different languages, but each make a sound which kick up a familiar feeling somewhere. That the world emanates from you.  That feeling of अहं ब्रह्मास्मिMusic, indeed knows no boundaries.  But close your eyes and feel that the music makes you limitless as well.) 

Swarocean- Půlnoční - Václav Neckář & Umakart





It is a Czech Christmas song which drew me in because of its pensive score and general arrangement. I honestly know little about it though Wiki tells me that Vaclav Neckar is a celebrated Czech actor and singer. I am not even sure if I know how the names here are pronounced but this apparent gulf to me is a true indication of how music really transgresses all kinds of fathomable boundaries. 

With the drum tempo it has, it is a good song to go tap-tap on your desk as it plays along with an occasional "Hallelujah" when it comes up in the song. And if you can, please pay some attention to the song video as well which tells a story or two in its own manner. 

(Recently I have put some posts on Quora blog Swarocean  which I am going to henceforth cross-post here. The blog is about songs which are not very well known but are rare accomplishments in their own rights. Unheard tunes, in different languages, but each make a sound which kick up a familiar feeling somewhere. That the world emanates from you.  That feeling of अहं ब्रह्मास्मिMusic, indeed knows no boundaries.  But close your eyes and feel that the music makes you limitless as well.) 

Swarocean- Man Mor Bani Tanghat

(Recently I have put some posts on Quora blog Swarocean  which I am going to henceforth cross-post here. The blog is about songs which are not very well known but are rare accomplishments in their own rights. Unheard tunes, in different languages, but each make a sound which kick up a familiar feeling somewhere. That the world emanates from you.  That feeling of अहं ब्रह्मास्मिMusic, indeed knows no boundaries.  But close your eyes and feel that the music makes you limitless as well.)

If you have seen the recent movie Ram-Leela (I hope I am not stoned by Hindu Right for this), then you must have heard a Gujrati folk song featured in it called Mor bane tanghat kare. While this version is nice in its own manner with the modern (read intrusive) arrangements, I came across the original, more authentic version of it via a friend which I am posting here.  

I don't know anything about it except that it is about a peacock in rain, so would love it if someone knowledgeable shares some more information about this song.

Friday, July 05, 2013

Chameleon

Prim and proper for the office, I started the bike only to have it look at me as if asking, “How would you like to die?” Its eyes were full of despair and hope. I didn't know that thus could happen. It had probably seen more of such emotions in the short life span than I had.

The hind legs crushed by a passing car; plastered to the tar of the road, I wondered if the chameleon felt like Jesus on the cross. I wondered if Jesus would have preferred a clean death.  Did it want me to play its “savior”? “How would you like me to die?”

If I were Indian government, I would prefer it to get dehydrated in the sun, lose consciousness and then lose life in that lost consciousness.

I would not have blood on my hands, I thought; or on my bike tires for that matter as I carefully rode past leaving it to its certain fate.  

Tuesday, April 23, 2013

The Dabang.


पहली क्लास थी बारहवीं की.

अभी 2 दिन पहले ही हम छोटे से शहर रांची से दिल्ली आये थे. अब ऐसा भी कोई छोटा शहर नहीं था रांची. पर कहते हैं न कि हर सेर का सवा सेर होता है. और फिर ये तो दिल्ली थी. बचपन से सुनते आ रहे थे कहावतों में. “अब दिल्ली दूर नहीं”, “बड़ा दिल्ली का सुलतान समझ रखे हो?”. पर बस इतना बड़ा शहर था कि घर से स्कूल आने में करीब पौने दो घंटे लगते थे. हमारे घर के तरफ इतनी दूर किसी का ऑफिस होता था तो वो आना जाना ट्रेन से करते थे. वो भी हफ्ते में बस एक बार आना होता था और एक बार जाना.

एक भैया के साथ रहने दिल्ली आये थे. एक सहमे से लड़के के लिए जिसके आँखे थोड़ी चुंधिया सी रही थी, उसके वाबस्ता feminist के लिए जो term उपयुक्त होगा बस वो इस्तेमाल कर लीजिये हमारे भैयाजी के लिए. हम यहाँ मिमिया रहे थे और वो बस हमें छुट्टा सांड समझ बैठे थे. पहले दिन स्कूल जाने के हमारे instructions कुछ ऐसे थे.
बेटा, ये 764 नंबर की बस सीधा तुम्हे स्कूल ले जाएगी. बस स्टॉप पूछ कर उतर जाना. वहां से बस 800-900m पर तुम्हारा स्कूल है. किसी से भी पूछ लेना. वो बता देगा.”

अगर हमें पहले से पता न होता तो अब तक पर हमें पक्का यकीन हो जाता कि वो सरकारी मुलाज़िम हैं.

“बस पॉकेट में कुछ पैसे रखना हमेशा. कहीं भुतलाओ तो चट से ऑटो पकड़ कर सीधा घर. वैसे भी ये दिल्ली है. लड़कों के लिए ज्यादा घबराने की ज़रुरत नहीं होती है.”
हम सब समझ गए थे.

कहते हैं कि “Boarding life makes a man out of a child”. हम तो यहाँ पर खासे साल बोर्डिंग में बिता कर आये थे. उस हिसाब से काफी man up हो जाना चाहिए था हमें. पर अब ये महानगर क्या जाने क्या करने वाला था. बड़ा शहर शायद यूँ कह लीजिये puts man in Haraaman. कुछ दिनों में सीख लिया था कि प्राइवेट बसों में सफ़र करना DTC से कहीं ज्यादा फायदेमंद है. उसमे २ रुपये की  टिकट ले कर कहीं भी जा सकते थे जब तक पकडे न जाओ. और जो पकडे गए तो भोली शकल बना कर बाकी के पैसे दे दो. DTC में तो सीधा 100 का fine होता था. और भी कुछ कुछ ट्रिक्स थे. खैर पर अभी पहली क्लास की तरफ वापस चलते हैं. ये भूमिका चावला के होंठों से भी बड़ी भूमिका बाँधने का मेरा कोई इरादा नहीं था वैसे.

पहली क्लास physics की थी. जिस जंतु (या जीव) ने दरवाज़े से एंट्री मारी थी उसने कतई मेरी बचपन की यादें ताज़ा कर दी थी. उनको देख कर मुझे अलिफ़ लैला में आने वाले जादूगर की याद आ गयी थी. मोटे, लम्बे और यूँ बिलकुल फ्रेंच बकरदाढ़ी की extension के माफिक झूलती हुई सी.

“म्हारा नाम A M Malik सें.”

घर्भवती अल्पविराम (Pregnant Pause) वातावरण में छा गया था.

थोड़ी देर में उन्हें यकीन हो गया था कि हमें रत्ती भर भी फरक नहीं पड़ता कि उनका नाम A M Malik है या A M Naukar.

“मैं तुम्हे Physics पढ़ाऊंगा. और बाकी ये है कि मैं All India Kendriya Vidyalaya Teacher Association का General Secretary भी हूँ.”

घर्भवती अल्पविराम नंबर 2. ये थोडा ज्यादा गर्भवती था.
पर हम तो बच्चे थे. मन के सच्चे थे. ये adult बातें हमारी समझ में कहाँ आने वालीं थी. तो ऐसा हुआ कि आखरी लाइन का न तो हमें मतलब समझ आया और न ही महत्व. आ जाना चाहिए था.

“यो की तुम सबने पहले ये बताओ कि दसवीं में तुम सबने कितने कितने नंबर प्राप्त किये? अच्छा रुको. ये म्हारे पास लिस्ट है.”
“ये सुमित दास कौन है? भाई खड़े हो जाओ. तो आपने सबसे ज्यादा नंबर प्राप्त किये?”

कैसी सी क्लास है. मेरे से ज्यादा नंबर भी नहीं लाया कोई. ये सोचते सोचते आपका ये नाचीज़ खड़ा हो गया.
“देखो ऐसा है हमारे सोनेपत में 60% लाने वाले बच्चे भी all-rounder होते हैं. ये अच्छे नंबर प्राप्त करके घणा खुश होने की कोई ज़रुरत ना है. म्हारी क्लास में सभी बच्चे बराबर हैं.”

जी, पल भर में ये आपका ये नाचीज़, नाचीज़ बन गया था. 


मुझे ज्यादा बातें याद नहीं है सर जी के बारे में. असल में वो GOD particle की तरह थे. मतलब exist तो करते थे पर ज्यादा उनके बारे में पता बस चुनिन्दा लोगों को ही था.  और जैसे आज God particle की पूछ है वैसे ही उनकी थी. और हमारे यहाँ चाहे भगवान हो या राजनेता, पूछ उसकी ही होती है जिससे सबकी फटती है. और बिलकुल God की तरह उन्हें इस बात से घंटा कोई फरक नहीं पड़ता था की किस किस की उनसे फटती है. प्रिंसिपल साहब भी उनके सामने चूहे बन जाते थे. स्कूल के दरबार में तो वो ऊपर थे, पर वो जो “बड़ा दरबार” था उसमे तो प्रिंसिपल एक अदने से employee ही थे.

वो आते थे, वो जाते थे. बाकी सब उनके नाम की बीन बजाते थे.

कह कुछ भी लूं, पर सर जी ने हमें बहुत कुछ सिखाया था. मसलन ऐसे पेपर में कैसे पास होते हैं जिसमे पास होने लायक आताजाता न हो. यही एक चीज़ आगे इंजीनियरिंग में हमारी इतनी काम आई जितनी अदनी physics, chemistry, mathematics अकेली कभी ना आ सकती थी. जैसे कि अगर पेपर में 8 सवाल आयें जिसमे से 5 करने हो तो exactly 5 सवाल attempt करके वो ही आते हैं जो अव्वल दर्जे के घिस्सू हो या फिर वो जो निरे बेवक़ूफ़ होते हैं. ये जो choice होती है वो कमज़ोर बच्चों के लिए होती है ताकि वो पास हो जाएँ. अब जब ये पास करवाने के लिए ही है तो जो लिखा नहीं पर intended है वो भी तो समझिये. 5 सवाल मतलब फुल मार्क्स 70. 8 सवाल मतलब फुल मार्क्स 112. अब बताइए, पास मार्क्स यानी कि 29 किसमें लाना ज्यादा आसान है?
या फिर इस सवाल को ले लिजिये.
वो सवाल जो objective किस्म के होते हैं. मसलन true-false वाले. वो ना आयें तो बस ऐसा करना होता है कि एक जगह true लिखिए और 2 पन्नों के बाद false लिखिए. A,B,C,D वालों के साथ भी यही करना होता था. कहीं न कहीं तो ठीक होगा ही.

(Disclaimer- ये हमें मलिक सर ने सिखाया नहीं था, पर फिर भी सिखाया ही था.)

जैसा हमने पहले कहा सर जी को किसी बात से फरक नहीं पड़ता था. सिलेबस ख़तम करवाने से तो बिलकुल भी नहीं. कॉलेज के उल्टा स्कूल में सिलेबस ख़तम करवाने की फ़िक्र टीचर से ज्यादा बच्चों को होती है. वैसे भी स्कूल की क्लास में कॉलेज की क्लास से ज्यादा front-benchers होते हैं.  तो हरेक पेपर से पहले एक सिलेबस ख़तम होने की क्लास होती थी.  

तो ऐसी ही एक क्लास हो रही थी जिसमे सिलेबस ख़तम करवाने की जद्दोजहद ज़ारी थी. जो पढ़ाया जा रहा था उसपे बिलकुल भी ध्यान न देकर उस प्रयास में हम भी अपना पूरा योगदान कर रहे थे. ध्यान देने लगते तो सिलेबस पूरा नहीं हो पाता.

“This ray come from this side. This convex lens is. This ray from the other side. इसके साथ भी same ही होगा. When the ray pass from both side, mutual induction happen and they converge.”

कोई ध्यान दे नहीं रहा था उनकी बातों पर. वो अपनी बकवास किये जा रहे थे और हम अपनी कि तभी एक आवाज़ आई.

“सर”

ये वो था जो नहीं चाहता था कि सिलेबस कम्पलीट हो पाए. कहीं किसी दिमाग में तांडव होने लगा था.

“’Mutual induction? समझ नहीं आया.”
“बेटा, तुमने दसवीं में कितने नंबर प्राप्त किये?”
“सर 78%. पर वो बिहार बो ..”
“How you got admission? यो कि such low marks. अच्छा sit down. कोई बात नहीं कम नंबर आये तो. अब आ ही गए हो तो पढ़ लो.”

पिछले 5 मिनटों में उस को ना तो lens समझ आया था न mutual induction और अब न ही ये explanation. बेचारा नासमझ. इतना कि फिर से कोशिश कर बैठा.

“सर, ये focal length की equation कैसे derive की जाती है? पिछली बार पेपर में आया था.”

सर जी ने ऐसा look दिया मानों ज़िन्नातों वाली ईईहाहाहा ईईहाहाहा वाली हंसने वाले हैं. पर वो ज़ब्त कर गए और प्यार से बोले, “बेटा सारी बातें मैं बता दूंगा तो अपने पैरों पर खड़े होना कब सीखोगे? खैर. ये दोनों side की lens equation लिख कर add कर लेना. मिल जाएगी focal length की equation.”

उसकी नासमझी की सारी हदें पार हो गयीं थी. अब वो क्या बोले वो भी समझ नहीं आ रहा था उसे.

जिन्होंने physics न पढ़ा हो या जिन्हें याद न हो, उन्हें बता दूं कि अगर आप convex lens के दोनों side के equations add करते हैं तो 0 = 0 prove होता है.


हमारे सर जी exams के paper खुद चेक नहीं करते थे. जैसे कि अपने introductory speech में उन्होंने बताया था कि वो बच्चों में भेद-भाव नहीं करते. सब उनके लिए बराबर हैं. तो फिर वो किसी को कम और किसी को ज्यादा नंबर देने का बीड़ा कैसे उठाते? तो ये नाहक काम उन्होंने कुछ बच्चों के जिम्मे छोड़ रखा था. ये एक ऐसा top secret था जो सबको पता था. तो एक बार ऐसा हुआ कि ये जो privileged बच्चे होते थे उनमें से एक की कुछ बच्चों ने स्कूल के बाहर धुलाई कर दी क्यूंकि उसने पिछले पेपर में कुछ को कम नंबर दिए था. तो किसी ने उसके substitute के तौर पर सर जी को मेरा नाम सुझा दिया. लो बेट्टा, सांप-छंछूदर सी हालत हो गयी.  डरते सहमते हम सर जी तक पहुंचे.

सर जी देखते ही चीखे, “तू यहाँ के कर रहा है भाई? यहाँ बच्चों को आना allow नहीं है.”
“सर वो पेपर चेक करने आपने ही बुलाया था.”
“तो तुझे किसने बुलाया? पहले तो ये बता कि तुझे बारहवीं में आने किसने दिया? पास कैसे हो गया तू? जब देखो तब तो तू क्लास के बाहर ऊदबिलाव की भांति देखता रहता है.”

मैंने अपने चेहरे पर जो expression आ रहा था जो कि हंसी, ख़ुशी और राहत की खिचड़ी थी उसे किसी तरह दबाया और उल्टे पांव वापस हो लिया. असली का उदबिलाव भी इतना सरपट नहीं भागता होगा. ये भी नहीं बोलने की ज़हमत उठायी कि वो मुझे किसी और से कनफुजिया रहे हैं.

ये 2nd pre-board के पेपर के टाइम की बात थी. 3rd preboard आते आते सारे बच्चों ने स्कूल आना बंद कर दिया था. Board के पेपर के लिए study leave मिली हुई थी जिसमे हमने करीब करीब study को leave ही कर दिया था. क्यूंकि IITJEE में अभी टाइम था और हम सारे बिहारी यहाँ board का पेपर पास करने तो आये नहीं थे. कम से कम उस उम्र में हम तो यही सोचते थे.

3rd pre-board के बाद एक दिन स्कूल जाना हुआ तो पता चला कि  मलिक सर को पेपर चेक करवाने के लिए कोई मिल नहीं रहा. तो हमारी मैडम जी ने उनको मेरा नाम सुझा दिया. हम उनके पास फिर से डरते सहमते पहुंचे. पर इस बार उन्होंने हमें कुछ नहीं कहा. शायद वो मुझे भी भूल गए थे और उसे भी जिसे मुझे पिछली बार वो समझ बैठे थे. वैसे उन्हें हमसे काम था इस बार. और वो किसी teacher association के general secretary बिना किसी राजनीति का ज्ञान रखे तो बन नहीं गए होंगे. कुछ instructions दिए उन्होंने जो कि सामान्यतः नेताओं के instructions जैसे ही थे जिनका सार इंग्लिश में कहें तो यूँ था कि  “Cover my shit”. पर हम भी कम थोड़े न थे. सब कुछ समझने के बाद, बिलकुल “Who will Police the Police” वाले लहजे में कहा, “और सर मेरी कॉपी कौन चेक करेगा?”

उन्होंने थोडा सोचा. ये सवाल उनसे शायद किसी ने आज तक नहीं पूछा था. फिर बोले, “रै पूरी क्लास के पेपर चेक करने हैं. तू ना आवे है क्लास में? बस बेटे, खुद को पूरे नंबर न दे दियो. बाकी सारा चलता है.”

पेपर चेक करने बैठा और सारे answers जो repeat कर रखे थे वो काट दिए थे. जिन्होंने objective questions के एक से ज्यादा answers लिख रखे थे उनके सारे answers काट दिए. Science के पेपर को literature की मानिंद चेक किया और जब final marks की लिस्ट बनायी तो पता चला कि highest marks मैंने दिए थे 44 . 70 में से. आज हमारे आगे के दांत सलामत हैं, हमारी उंगलियाँ धनुष के आकार की नहीं हैं और हम लंगड़ा कर नहीं चलते. इसकी शायद एक ही वज़ह है कि board exam से 6 हफ्ते पहले होने वाले 3rd mock पेपर के नंबरों से न तो किसी को और न किसी के बाप को कोई भी फर्क पड़ता था.


हमारा chemistry का final viva कतई eventful रहा था जिसका ज़िक्र मैंने इस पिछली कहानी में किया था. हमारा physics के viva में कोई ऐसा हो-हंगामा नहीं हुआ था. वो क्या था न, हमारे सर जी दबंग थे. कुछ ज्यादा ही. Practical हो रहा था. सब के सामने ही External एक एक कर बच्चों का viva भी ले रही थी कि सर ने एंट्री मारी. External को जा कर साफ़ साफ़ बोला,

“मैडम सब बच्चे नूं अच्छे अच्छे नंबर लगने चाहिए.”

मैडम थोड़ी अवाक् रह गयी थी.

“क्यूँ सर? ऐसा कैसे हो सकता है? कुछ बच्चे अच्छे होते हैं पढने में कुछ उतने अच्छे नहीं होते. सबको एक से नंबर दे दिए तो उनमें अंतर क्या रह जायेगा?”
“मैडम बच्चे कोई अच्छे –खराब ना होते हैं. सारे बच्चे एक से होते हैं. सारे बच्चे भगवान् का रूप होते हैं. समझे ना?”
GAME. SET. MATCH.

Viva ख़तम होने के बाद  सर ने मुझे अलग रूम में बुलाया. मेरे सामने एक लिस्ट रखी जिसमे सारे क्लास के बच्चों के नाम थे. फिर बोला, “देख ये लिस्ट है. इसमें तू अपने और जो जो बच्चे पेपर चेक किया करते थे physics के उनके 30-30 नंबर लगा दे viva के.”
GAME. SET. MATCH. CHAMPIONSHIP.

P.S :- जब board का रिजल्ट आया था तो मैंने चेक किया था. बस जी उनके physics viva में 30 नंबर आये थे जिनके मैंने अपने हाथों से लगाये थे. न कम न ज्यादा. 

Monday, March 11, 2013

"Kolonkini Radha" English Translation

A few days back, I came across a beautiful Bengali song courtesy of the gem who goes by the handle of @rohwit on Twitter. The song is called "Kolonkini Radha" sung by a guy named Pota R Marudyan. Now the  song title is itself alluringly mystic, the song as you can listen here does complete justice to this term I just came up out of nowhere.

Now that you are done listening and loving the song, the problem arrives. The lyrics translation are nowhere to be found on the internet which reinstates my belief that for every piece of art which becomes popular, there are at least 10 others which are as good or better and go rather unnoticed. So the last resort was to ask a friend who is  Bengali and one who will be willing to translate the song for me. In stepped Sayan  as a saviour who goes by @wolfpackofgod on Twitter. What follows is the translation of the song in English done by Sayan with generous help from his Dad quoted verbatim. 

(This is set in the lore of Radha and Krishna, though they loved each other deeply, they were ultimately parted. The parting did not in any way diminish their love and it has become stuff of Hindu legend.

The root conce
pt here is that pure love for Krishna is the only indestructible in this ephemeral world. It is the path to Moksha and ultimate salvation. The River is the river of the senses, the way in which we are enmeshed inside the material world. The clothes are a metaphor for the facades we wear in this world, our roles etc. ‘Kalankini’ here means someone who is associated with illicit activity. This is because, much as an illicit affair is guarded, cherished and nurtured. Similarly, must our love for Krishna and the path of Moksha be nurtured and closely guarded, kept in the deepest recesses of our heart.)


Loosely translated, the song reads thusly:

“O my brothers…
Hear me, whom you have named Kalankini Radha
The wicked (an endearment here, not meant in the derogatory sense, akin to saying ‘saala’ to a friend, this emphasizes the singers deep familiarity and love for the Lord Krishna) Kanu (Krishna), is up on the Kadamba tree…
Oh my love, don’t come down into the river
(the same is repeated for another verse)
Please don’t go near the river
Please don’t go near the river… (repeated for emphasis)

1:27 onwards
Don’t come down into the river dear one
Please don’t go near the river
Oh all you people who live here!!! 
Don’t go near the river…
Do not go!!!
Dear people, stay away stay away!
Neither home nor hearth
Nor river bank! 
Do not go near…

(Mahi – Someone who is in love)
All have named me ‘Kalankini Radha’
Oh my love….
I am your Kalankini Radha
My mischievous love, Kanu, is up in the Kadamba tree
And I am his Kalankini Radha
Oh people!
Do not go near the Kadamba tree…
Kanha sits crying for his Radha 
Up in the Kadamba Tree
Do not go near the river
Because Kanha sits crying on the Kadamba tree
Do not go near the water!!!

Oh my love… 
I am your Kalankini Radha
My mischievous love, Kanu, is up in the Kadamba tree
And I am his Kalankini Radha
Do not go near the river

(Flute solo)

O you sad people!
There is no water in the kalashi
(the water is a metaphorical allusion to pure love)
O you people!
Radha cannot walk
And cannot wear her nupur
(Because He will hear, and he will know where She is)
(sound of anklets ringing)
Do not go near the water
Oh my love…
I am your Kalankini Radha
Sitting in the Kadamba tree
Is the naughty Kanha
My love!
Don’t go near the Water!

(Refrains this line again and again as the chorus comes in and the music fades out) 

Tuesday, March 05, 2013

Khel..

भागती सी ज़िन्दगी,
मानों दिल में कोई चोर बैठा हो। 

पैसे का , Traffic का, Boss का, ज़िन्दगी का बुखार 
मानों बन्दर बनकर पीछे पड़ा हो।

सात समुन्दर पार बैठे किसी ने 
गोया रास्ते में चवन्नियां बिखेर रखी हो। 
ज्यादा survive  कर  गए तो 
चवन्नियां अठन्नियां और अठन्नियां रुपये बनते  जाते हैं। 
और हम छुट्टे छूटने का गम और छुट्टे ही कमाने की ख़ुशी मनाते जाते हैं। 

आधी नज़र से ये भी दिखता है 
कुछ लोग अंगडी लगाने को तैयार बैठे हैं।
तो कहीं कोई उस कोने में जल भुना बैठा होता है। 
आधी नज़र ही खुल पाती है
बाकी तो सिक्कों की सीध तलाशती रहती हैं।

और  जैसे जैसे ऊपर जाते हैं, 
सिक्कों का मकान बनता है, 
चीज़ें और बेचैन होने लगती हैं।
पता भी नहीं चलता कि  कब रफ़्तार दूनी हो गयी है।

पर वो  बन्दर फिर भी पीछे लगा रहता है
फिसलने की ताक में 
जलने की ताक में 
गिरने की ताक में
और अंत में जीतता वो ही है। 

पता नहीं ज़िन्दगी खेल रहे हैं या Temple Run. 

Wednesday, February 06, 2013

Why AaakashVani deserves to be seen.


SPOILERS..SPOILERS..SPOILERS...

Chances are you might not have seen AakashVaani. Even in multiplexes, it couldn't survive even one week. But it deserved to be seen. Some of the reasons I could think of are as below. 

1.      Its best bits are poles apart from the best bit of Pyaar ka Punchnama-  last film of director Luv Ranjan.  To me that shows that the director is not afraid to push his envelope. This genre thing sometimes kills an artist. He is not going to turn into another Imtiaz Ali or worse, another RGV who  started with Shiva, rocked with Satya, was okayish with Company and deserved to be stoned for RGV ki Aag. And far more importantly, the director is not being different for the sake of it. The different bits are well directed and make a lot of sense. If you watch only the second half of AkaashVani, you will find it difficult to say that the same director made Pyaar ka Punchnama. And that is a good thing in my book.

2.      It says a topical story with loads of sensitivity. And subtlety.  And with a degree of taste not commonly found in Bollywood. In short, it is different. Not the “different” said by Rakhi Sawant or Mallika Sherawat everytime they find work. For example, this film raises the issue of marital rape before people started going :O at the mention of marital rape in Justice Verma report.

3.   There was a scene in Dil Chahta Hai – the coming of age film of our generation in several ways. It came towards the end of the movie after Aamir Khan had proposed to Preity Jinta. In this scene, Ayub Khan manhandles Preity and is punched by Aamir. I am sure there must have been claps inside the theatre at this point. After all Aamir was behaving like a quintessential male is supposed to. Like a knight in shining armour, saving his lady love. What is not there to adore about?

There is a similar scene in AkaashVani. The girl is manhandled by her husband. His parents stand around being all wimpy. His boyfriend is also there. And the girl goes up and lands a full-bodied slap on her husband. Full “Dhai Kilo ka haath” type slap. I don't know about others, but I clapped at this scene. And I don't know if there is something to adore in it, but I found a lot to admire in this scene. 

She doesn't do it because her boyfriend is some napunsak type but because she could do it. Actually later when her douche bag husband comes for her again, his boyfriend does get involved. Now I am not saying that Preity couldn't have hit Ayub Khan but sometimes it is important to show things. 

In another scene, the chasm between a typical Indian husband and a housewife is concisely shown in a scene where the husband asks her wife for water in a manner the significance of which can only be seen and not written about. And there are many such scenes in the movie which are easy to gloss over if you are not truly engrossed in the movie. Now that is a big IF, which brings me to my last point. 

4.    Possibly this is the most important point I could think about. AkaashVani is a good example of how and why not to make a film if as a director you are confused or constrained. I know many people who walk out of a film at interval if they get bored. Simply put, such people will never know why the film was good and all my above points will sound Greek to them. It was as if director decided to come out of his comfort zone only after he had shot half his movie. As if he was hoping that he will come across some bingo moment like that 5 minute speech by Rajjo from Pyaar ka Punchnama. 

I have a simple yardstick to judge a movie no matter how classy, pertinent or artistic it might be. A good movie must not bore me. On that count, AkaashVani fails miserably in first half. Fortunately I am not a professional reviewer, so I can turn a blind eye to bad bits while talk about the good ones, but it does get excruciating after a point. 

The movie could have been a great counter for something like Cocktail with the stereotyping it depicted. But chances are that the people who decry Bollywood’s misogyny citing examples like Cocktail, Kuch Kuch Hota Hai or the likes will never watch AkaashVani. And the worst part is I can’t even blame them for that. They might counter by saying that they left by the interval and I will have nothing to retort back. 

It should be seen so that one may understand how not to screw up in this manner. I should be seen so that some directors out there can understand that it is better to be different and fail rather than be formulaic and boring. Take David for example. It was also a terribly boring movie at points but it got those much needed brownie points for being different. 

Sadly, for AkaashVaani, by the time it tried to be different, the brownie was all gone.

Monday, January 28, 2013

Bollywood Quiz at kweezzz

Lately, I have been hosting some quizzes on Twitter quiz handle which goes by the name @kweezzz. Last week I had two quizzes- one General quiz and another Bollywood quiz. Frankly I copied questions from all over internet for general quiz so I see no point in posting it here.(But will still do so later anyway to assuage my attention seeking disorder).

So here are the questions with the answers of the Bollywood quiz.

Try Question (Just like bachpan mein pahli ball par out ho jao to use Try Ball bolte the.)

Q.  Who was the first girl from Kapoor Khaandan to have a Bollywood debut? Which film?

Now on to the real thing..

1. What is the contribution of the following film to Bollywood? 






































2. Munaf Patel has a nickname which he has been given after this film. Which film? 

3. What is this a top 10 list of ?

1. 3 Idiots
2.  My Name is Khan
3.  Don 2
4.  Kabhi Alvida Na Kahna 
5.  Ek Tha Tiger
6. Om Shanti Om
7.  Ra One
8. Dhoom 2
9.  Rab Ne Bana Di Jodi
10.  Veer Zara

4. What has been shaded out in red in this picture? 

































5. Name all the films in which Dileep Kumar played a Muslim character.

6. Who is this person? Why is the picture crossed or marked with a X?































7. There is something very unique about this film. What?





















8. Embedded below is an audio clip. There are two voices in it. I want you to identify both the voices.







9. Connect. 
























10. Connect 

































11. Again, connect the following images.. 
Hint:- That Amitabh has acted in all of them is not the connect. :P





























12. Below is a map of India in which I have placed some red dots. I want you to connect these red dots. 
Click on the image for a larger picture which will be needed to answer the question. I might not be very accurate with some dots as the map is not so detailed. 
P.S- This question went unanswered in online Kweezzz/ 
























13. Connect.. 




























These were the questions. Please give a sincere try before hopping to the answers which follow:


Answers 

The answer of the try question is that the first girl to debut from Kapoor Khaandaan was not Karishma Kapoor but Sanjana Kapoor- daughter of Shashi Kapoor in the film 36 Chowringhee Lane. She later played the main actress in Hero Hiralal. 

1. This poster of the movie inspired the Dev D poster. The original poster is as shown below. 







































2. Lagaan Bhai. 

3. This is a top 10 list of highest overseas grossers from Bollywood. 

4. Kisna- The Warrior Poet. 

5. Dileep Kumar played a Muslim character in only one film which was of course Mughal-e-Azam. 

6. The guy is Maya Dolas. He was played by Vivek Oberoi in Shootout at Lokhandwala. The picture is crossed to indicate that he has been eliminated. 

7. This is the only film ever in which Bertrand Russel played a cameo.

8. The two voices are of Sneha Khanwalkar and of Durga who sang Dil Cheecha leather in GOW2. 

9. The connect is that Govinda has acted in the Bollywood remakes of all these movies. 

In clockwise order :-

40 year Old Virgin- Naughty @40.
My Cousin Vinny- Banda Ye Bindaas Hai. 
Strangers on a train- Chalo Ishq Ladaye. 
Bawarchi- Hero No 1
Liar Liar- Kyunki Main Jhooth Nahi Bolta.
Hitch- Partner. 

Of all these, Banda ye Bindaas hai is yet to release. 

10. The connection is that all these films featured child debut by actors who later became stars. Dharam Veer had Bobby Deol, Kismet had Mehmood, Reshma aur Shera had Sanjay Dutt and Shree 420 had all the sons of Raj Kapoor. 

11. The connect is not that Amitabh Bachhan played a writer in all these films. AB didn't play a writer in Manzil. The connect is that all these are the names of books written by Amitabh in various films. He wrote Anand in Anand, Baghban in Baghban, Kabhi Kabhi in Kabhi Kabhie and he wrote a book called Manzil in movie Ek Nazar.

12. This question went unanswered in the online kweezzz. The answer is in the image below

























Kuch Yaad Aaya?? Yes, the answer is that places marked in red are the places in the rap song Rail Gaadi sung by Ashok Kumar  from movie Aashirwaad. 

13. The connect is that they all have played Draupadi at different points. 

Frankly quiz ke baad bahut gaaliyaan padi thi. If you also have some sweet words to say, leave them in the comments box. Till then, Picture abhi baaki hai dost....